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khud ko khojne ka safar

Thursday, October 7, 2010

प्रकृति की पुकार सुनो.......















आज  मे  खिड़की पर  खड़ी थी 
तेज़ी से भागते यातायात व 
आते जाते लोगो को देख रही थी
तभी मेरी नज़र 
अपने बगीचे के पेड़ पौधों पर पड़ी 
लगा जैसे वो शिकायत कर रहे हैं
और  नाराज़गी से घुर  रहे है  
जैसे कह रहे हो 
अब तुम्हरे पास हमारे  लिए वक्त ही नहीं है
पहले रोज़ प्यार से सींचा दुलारा करती थी
घंटो निहारा  करती थी 
जेहन पर एक झटका सा लगा
वाकई मे  जीवन की भाग दौड़ 
प्रकृति से दूर  करती जा  रही है
और हमें अहसास तक नहीं है 
तभी प्रकृति को  रौद्र  रूप मे 
आना  पड़ता है
कभी सुनामी बनकर 
तो कभी हमारी बुनियाद  को हिला कर
अपने  होने का अहसास करना पड़ता है

15 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  2. तभी प्रकर्ति को रौद्र रूप मे
    आना पड़ता है
    कभी सुनामी बनकर
    तो कभी हमरी बुनियाद को हिला कर
    अपने होने का अहसास करना पड़ता है

    गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  3. नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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  4. समय नहीं है ???? लगता है आज कल कविता कुछ ज्यादा लिख रही हैं... ha ha ha...
    खैर मजाक नहीं, बहुत ही सुन्दर चित्रण है आज की वास्तविकता का...

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  5. thanks shekhar ....hmmmmm.....haan aaplogo ko padh kar thoda josh aa gaya hai.......heheheheh

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  6. आपकी रचना पढकर बहुत अच्छा लगा। चित्र भी अच्छा लगा। और हमको भी खिड़की पर खड़ा होकर भागते ट्राफ़िक को देखना अच्छा लगता है। प्रकृति के प्रति हमें सदैव सचेत रहना चाहिए।

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  7. अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
    हज़ामत पर टिप्पणी के लिए आभार!

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  8. प्रकृति के साहचर्य की प्रशंसनीय रचना ।

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  9. bahut bahut dhanyawad ki app mere blog pe aye
    or mujhe kuch bataya
    apka blog mene dekha bada hi sundar vichar hai apke
    agar app mere blog ke sadasay bane to mujhe badi kooshi hogi

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  10. 1st line me "me" esa nai likha jata-hindi me,as far as my knowledge. :)

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    1. yes aapne sahi kaha ,par hindi typing nhi aati muskil hota tha
      but ab nhi hoga thanks ...

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