आज मे खिड़की पर खड़ी थी
तेज़ी से भागते यातायात व
आते जाते लोगो को देख रही थी
तभी मेरी नज़र
अपने बगीचे के पेड़ पौधों पर पड़ी
लगा जैसे वो शिकायत कर रहे हैं
और नाराज़गी से घुर रहे है
जैसे कह रहे हो
अब तुम्हरे पास हमारे लिए वक्त ही नहीं है
पहले रोज़ प्यार से सींचा दुलारा करती थी
घंटो निहारा करती थी
जेहन पर एक झटका सा लगा
वाकई मे जीवन की भाग दौड़
प्रकृति से दूर करती जा रही है
और हमें अहसास तक नहीं है
तभी प्रकृति को रौद्र रूप मे
आना पड़ता है
कभी सुनामी बनकर
तो कभी हमारी बुनियाद को हिला कर
अपने होने का अहसास करना पड़ता है
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeleteतभी प्रकर्ति को रौद्र रूप मे
ReplyDeleteआना पड़ता है
कभी सुनामी बनकर
तो कभी हमरी बुनियाद को हिला कर
अपने होने का अहसास करना पड़ता है
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसमय नहीं है ???? लगता है आज कल कविता कुछ ज्यादा लिख रही हैं... ha ha ha...
ReplyDeleteखैर मजाक नहीं, बहुत ही सुन्दर चित्रण है आज की वास्तविकता का...
thanks sanju
ReplyDeletethanks shekhar ....hmmmmm.....haan aaplogo ko padh kar thoda josh aa gaya hai.......heheheheh
ReplyDeleteआपकी रचना पढकर बहुत अच्छा लगा। चित्र भी अच्छा लगा। और हमको भी खिड़की पर खड़ा होकर भागते ट्राफ़िक को देखना अच्छा लगता है। प्रकृति के प्रति हमें सदैव सचेत रहना चाहिए।
ReplyDeleteअपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
ReplyDeleteहज़ामत पर टिप्पणी के लिए आभार!
bahut dhanyawaad aapko........
ReplyDeleteप्रकृति के साहचर्य की प्रशंसनीय रचना ।
ReplyDeletethanks sir.......
ReplyDeleteacchee post Aabhar......
ReplyDeletebahut bahut dhanyawad ki app mere blog pe aye
ReplyDeleteor mujhe kuch bataya
apka blog mene dekha bada hi sundar vichar hai apke
agar app mere blog ke sadasay bane to mujhe badi kooshi hogi
1st line me "me" esa nai likha jata-hindi me,as far as my knowledge. :)
ReplyDeleteyes aapne sahi kaha ,par hindi typing nhi aati muskil hota tha
Deletebut ab nhi hoga thanks ...