देखती हूँ खुद को
रोज़ अपने अस्तित्व
की लड़ाई लडते हुए ,
चाहे अनचाहे रिश्ते
लगातार ढ़ोते हुए ,
खुद के सुनाय फैसलों पर
खुद को रोते हुए ,
अपनी नाकामी छुपा कर
खुद को मुस्कुराते हुए
जतन से सजाये हुए सपनो को
टूट कर बिखरते हुए
एकाएक कुछ देख कर चौक जाती हूँ
फिर से उसे महसूस करने से घबराती हूँ
जादातर वादे जो जिन्दगी मे टूटे ,
वो सब मैंने ही खुद से किये थे ,
जादातर नाकामी की वजह ,
सिर्फ मेरी कमजोर कोशिश थी ,
हकीकत को समझ कर
फिर से संभालते हुए ,
नए सिरे से सहेजने की कोशिश
खुद को करते हुए ,
भीगी हुई आँखों को
इत्मीनान से मुस्कुराते हुए
bahut hi sundar...
ReplyDeleteisi umeed se to zindagi aage badhti hai...
bahut hi sundar....
thanks shekhar
ReplyDeletebahut acha likha hai aapne.. aise hi likhti rahiye..
ReplyDeleteDownload Direct Hindi Music Songs And Ghazals
thanks sonal jee....
ReplyDeleteनए बिम्बों का बड़ी ही खूबसूरती से भावाभिव्यक्ति में प्रयोग किया है मंजुला Masi ji...बहुत अच्छी कविता.”
ReplyDeleteवाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई
ReplyDeletethanks sanju......
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