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khud ko khojne ka safar

Tuesday, September 28, 2010

मन की उलझन

कभी कभी जिंदगी बहुत अजीब लगती है ,
जैसे बेमतलब सी बस सांसे भरती है ,
जीना है इसलिए बस जिए जा रहे है
जबरदस्ती कोई बोझ सा ढोए जा रहे है

जिस रह पर चले है उसकी कोई मंजिल नहीं है
लौट पाना भी जहाँ से मुमकिन नहीं है ,
बहुत लोग साथ है पर जैसे कोई साथ नहीं है ,
हर हंसी के पीछे दर्द बहुत गहरा है .

3 comments:

  1. यही तो है रंग-बिरंगी जिंदगी - जो कभी-कभी ऐसी भी लगती है और फिर कभी कभी ?? - समय मिले तो "गुडिया की पुडिया" पढने के लिए आमंत्रित करना चाहूँगा

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  2. manjulaa ji bahut hi sundar rachanaa -mamta

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  3. अले वाह, कित्ता प्यारा लिखती हैं आप...

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    'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .

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