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khud ko khojne ka safar

Monday, August 9, 2010

व्यथा

जीना बहुत आसन है ,
हँसना भी मुस्किल नहीं
पर परते उतारना हमारी आदत है,
अच्छाई को छिल कर बुराई निकलना ,
हमें सुख देता है सुकून देता है ,
अच्छाई को गुना करने की किसी को फुर्शत नहीं ,
बुराई को पल मे कई गुना करना हमारी ताकत है ,
सच खुसबू मे लिपटा हुआ आता है ,
हमारी हरकतों से बदबूदार होके लौट जाता है
खुद ही सबकुछ मुस्किल करते है
फिर कहते है जीना मुस्किल है
मुस्कुराना आसन नहीं
यही आज का जीवन है
यही सच है इस दौर का

4 comments:

  1. WOw nice poem
    The line muskurana aasan nahi really nice
    i liked it
    Waiting for more to come

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  2. सच्ची और बहुत अच्छी बात

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  3. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  4. ज़िन्दगी की सच्चाई बताती सुन्दर रचना

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