जिंदगी से जिंदगी चुराना सिख लिया,
अस्को से आसिकी निभाना सिख लिया ,
जिंदगी क्या मौखोल उड़ा पायेगी मेरा ,
उसकी हर चाल पर मुश्कुराना मैंने सिख लिया ,
खवाबो के पीछे भागना मैंने छोड़ दिया,
उन्हें कैसे खुद अपने पीछे लाना है ये सिख लिया ,
ख़ुशी या रंज कोई डिगा न सकेगे कदम मेरे ,
हर हाल मे चलते जाना मैंने सिख लिया ,
खुद मे संवेदनायों का मरते जाना बहुत सालता था मुझे ,
अब मैंने खुद को खुद के अन्दर जिन्दा रखना सिख लिया .
द्वारा मंजुला
शुभ दिन
बहुत सही है भाई जी.
ReplyDeleteऐसा ही होना चाहिये.
अब मैंने खुद को खुद के अन्दर जिन्दा रखना सिख लिया . yes , it is real success
ReplyDelete"जिंदगी क्या मौखोल उड़ा पायेगी मेरा
ReplyDeleteउसकी हर चाल पर मुश्कुराना मैंने सिख लिया"
जीने का सबसे बड़ा सबक.
sabhi adarniye dosto ka danyawaad....aapki pratikriya agey bhi milti rahe ..isi aasha ke saath
ReplyDeletemanjula
भावना प्रधान काव्य, सुन्दर
ReplyDeleteachchaa hai urdu ke shbdon me galati naa ho isaka dhyaan rakhen
ReplyDeleteवाह...कविता बहुत बढ़िया है.हिंदी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
अत्यंत सुन्दर रचना ,,एक खूबसूरत अंत के साथ ....शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है ...शायद सफ़र कुछ आसान हो ,,,!!!! इस रचना के लिए बधाई आपको
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteMY OWN BLOG
http://sanjaybhaskar.blogspot.com