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khud ko khojne ka safar

Thursday, July 15, 2010

कब तक खुद को खुद से अनजाना सा रखे
झूट मुट खुश रहने का क्यों भरम सा रखे
मन के भीटर सबकुछ बिखरा बिखरा है ,
ऊपर से कब तक खुद को सहज सुलझा रखे.
जीवन के उल्घे धागों को सुलझा ही लेगे कभी ,
कब तक इस भरम को खुद मे जिन्दा रखे .
हर तरफ राह मे पत्थर और कांटे है ,
पल पल घायल होते तन मन को कैसे महफूज़ रखे

2 comments:

  1. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

    Sanjay kumar
    HISAR (HARYANA)
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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