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khud ko khojne ka safar

Monday, March 30, 2009

भीड़ के बिच मे चलते चलते बहुत दूर निकल आये थे,
जाना कहीं और था कहीं और चले आये थे,
दूर दूर तक फैला है अनजान सा सन्नाटा ,
कहाँ गए वो सभी जो चले मेरे साथ थे?
बहुत याद आती है माँ के आँचल की छाव,
भाइयों से लड़ना झगड़ना वो खेलना वो रूठना
बहुत मुस्किल है पाना वापस वही अपनापन और प्यार ,
मशीन जैसा हो चूका आज का इंसान है ,

1 comment:

  1. manjula ji app bilkul sahi bol rahe ho,, hum sab ko bachpan ke wo din bahut yaad aate hai jab kitna apnapan tha, khub khelte the, jhagte the,,,khub masti karte the....

    "koi lota de wo bachpan ke din......................"

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