पता नहीं इंसान की कैसी फितरत है
वही अजीज़ है जो हासिल मुस्किल hai,
उस पाक रह पर वो ले चला है मुझे ,
पर बार बार भटक जाना मेरी किस्मत है ,
उपरी ख़ुशी से दूर एक रूहानी सुकून भी है ,
समघ कर भी उसकी बात बहुत अनजान हूँ उस से ,
वो जानता है अंत मै उनकी पनाह ही मुझे आना है ,
मेरे इंतज़ार मै सदियों से पलके बिछाये बैठा है
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