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khud ko khojne ka safar

Thursday, May 31, 2018

बहुत भीड़ है

बहुत भीड़ है
पर अकेलापन है
दिखते साथ है
पर कोई साथ नहीं है
मेरे हिस्से का सुकून
चुरा के  पूछता है
तबियत आपकी
नासाज़ क्यों है
सोचती हु लौट चलू
अतीत की ओर
पर वहां किसी को
मेरा इंतज़ार नहीं है
बुलाती है पास जो राहे
 मंज़िल का पता उनके पास नहीं है

मंजुला


2 comments:

  1. दिलकश रचना....बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।

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