कशमकश बहुत है
मन के अन्दर
खोज खुद की
इतनी आसन तो नहीं
इस कोशिश मे
लगता है
कुछ छुट सा रहा है
जिसको शायद मै
जाने नहीं दे सकती
प्रश्नचिंह सा लगा देता है मन
बहुत सी कोशिशो को
बहुत मजबूती से जमे
संस्कार भी रास्ता रोक लेते हैं
फिर भी एक अजीब सा
आकर्षण है
जो मुझे खिचता है
पूरे वेग से
अपनी और
पता नहीं क्या है
भविष्य की मुट्ठी मे
मेरे लिए
फिर भी चाहती हु
इस पथ पर चलते जाना
जब तक अर्थ न पा लू
इस जीवन का
या फिर जान सकू
उस रहस्य को
जिसे
आत्मा साक्षात्कार
कहा जाता है .
(चित्र गूगल से साभार )
इस कविता के भाव, लय और अर्थ काफ़ी पसंद आए। बिल्कुल नए अंदाज़ में आपने एक भावपूरित रचना लिखी है।
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
ReplyDelete.....शानदार प्रस्तुति !
bhawpoorn.....
ReplyDeleteजमे हुए संस्कार और आत्मा के साक्षात्कार के बीच के द्वन्द को और उस द्वन्द से होने वाली व्याकुलता को सुन्दर शब्द दिए है आपने ... बहुत खूब
ReplyDeletethanks sanjay jee,mridukajee & ajayjee...
ReplyDeleteregards
manjula
बहुत अच्छी रचना...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
Dhanyawad neeraj jee
ReplyDeleteप्रभावी रचना ... लाजवाब
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