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khud ko khojne ka safar

Friday, September 24, 2010

उसकी याद मे ....

उससे कोई ख़ास वास्ता न था ,
साथ ही का बस रिश्ता भर था ,
कभी कभी मिलना मुस्कुराना
बस संवाद इतना ही था

आज उसका आचानक चला जाना
इतना उदास करेगा सोचा न था
सबको समझने का दावा करनेवाला मन
खुद ही खुद से कितना अनजाना है,

5 comments:

  1. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  2. बहुत बढ़िया,
    बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  4. bahut hi achhi rachna...
    yun hi likhte rahein....

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