बहुत भीड़ है
पर अकेलापन है
दिखते साथ है
पर कोई साथ नहीं है
मेरे हिस्से का सुकून
चुरा के पूछता है
तबियत आपकी
नासाज़ क्यों है
सोचती हु लौट चलू
अतीत की ओर
पर वहां किसी को
मेरा इंतज़ार नहीं है
बुलाती है पास जो राहे
मंज़िल का पता उनके पास नहीं है
मंजुला
दिलकश रचना....बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
ReplyDeleteबोहोत खूब
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