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khud ko khojne ka safar

Tuesday, September 28, 2010

मन की उलझन

कभी कभी जिंदगी बहुत अजीब लगती है ,
जैसे बेमतलब सी बस सांसे भरती है ,
जीना है इसलिए बस जिए जा रहे है
जबरदस्ती कोई बोझ सा ढोए जा रहे है

जिस रह पर चले है उसकी कोई मंजिल नहीं है
लौट पाना भी जहाँ से मुमकिन नहीं है ,
बहुत लोग साथ है पर जैसे कोई साथ नहीं है ,
हर हंसी के पीछे दर्द बहुत गहरा है .

Friday, September 24, 2010

उसकी याद मे ....

उससे कोई ख़ास वास्ता न था ,
साथ ही का बस रिश्ता भर था ,
कभी कभी मिलना मुस्कुराना
बस संवाद इतना ही था

आज उसका आचानक चला जाना
इतना उदास करेगा सोचा न था
सबको समझने का दावा करनेवाला मन
खुद ही खुद से कितना अनजाना है,

Friday, September 17, 2010

एक और इशारा खुद को पाने का ..

उन्होंने कहा सबसे प्यार करो
जिन्दगी खुद ही प्यारी हो जाएगी
मैंने कोशिश की पर हो नहीं पाया
हर किसी के लिए प्यार पनप नहीं पाया

मैंने उन्हें कहा मेरी समस्या का हल करो
मेरे अन्दर भी कुछ रूहानियत भरो
उन्होंने कहा पहले जो भरा है उसे बाहर करो
क्रोध ,नफरत , इर्षा ,इन सबको अलविदा कहो.

जब पात्र ख़ाली होगा तभी तो कुछ भरेगा
तुम तो पहले ही इतना सब भरे बैठे हो,
सारी धुंद को खुद मे से साफ करे,सबको माफ़ करो
तभी सबको और खुद को सचमे प्यार कर पाओगे