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khud ko khojne ka safar

Monday, April 30, 2012

स्वप्न जो सच सा है
















कशमकश बहुत है
मन के अन्दर
खोज खुद की
इतनी  आसन तो नहीं
इस कोशिश मे
लगता है
कुछ छुट सा रहा है
जिसको शायद मै
जाने नहीं दे सकती
प्रश्नचिंह सा लगा देता है मन
बहुत सी कोशिशो  को
बहुत मजबूती से जमे
संस्कार भी रास्ता रोक लेते हैं
फिर भी एक अजीब सा
आकर्षण है
जो मुझे खिचता है
पूरे वेग से
अपनी और
पता नहीं क्या है
भविष्य की मुट्ठी मे
मेरे लिए
फिर भी  चाहती हु
इस पथ पर चलते  जाना
जब तक अर्थ न पा लू
इस जीवन का
या फिर जान सकू
उस रहस्य को
जिसे
आत्मा साक्षात्कार
कहा जाता है .















(चित्र गूगल से साभार )

8 comments:

  1. इस कविता के भाव, लय और अर्थ काफ़ी पसंद आए। बिल्कुल नए अंदाज़ में आपने एक भावपूरित रचना लिखी है।

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  2. बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
    .....शानदार प्रस्तुति !

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  3. जमे हुए संस्कार और आत्मा के साक्षात्कार के बीच के द्वन्द को और उस द्वन्द से होने वाली व्याकुलता को सुन्दर शब्द दिए है आपने ... बहुत खूब

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  4. thanks sanjay jee,mridukajee & ajayjee...
    regards
    manjula

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  5. बहुत अच्छी रचना...बधाई...

    नीरज

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  6. प्रभावी रचना ... लाजवाब

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