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khud ko khojne ka safar

Friday, March 18, 2011

एक संकल्प इस होली मे ....

फीकी पड़ चुकी है 
मन की चादर
सोचा इस होली मे 
कुछ नए रंग भरू
हरे नीले लाल के संग
कोमल गुलाबी रंग भी भरू
कोशिश की 
पर कुछ हो न पाया 
कोई भी रंग चढ़ न पाया 
कारण खोजा तो जाना
आस पास फैले भ्रस्ट्राचार ,अनाचार 
नित होते घोटालो ने 
सारे मन आकाश को ढक डाला 
सारा अंतर्मन काला कर डाला 
तभी कोई रंग 
उसपर चढ़ नही पाया 
अपने अपने दयारे मे कैद
कब तक घुटेगे इस तरह ?
आईये एकजूट होकर 
इन अव्यवस्ताओ से लडे
बड़ा काम न सही 
आस पास की गंदगी 
को ही साफ़ करे 
दाग लगा रहे जो समाज, देश को 
ऐसे शख्स को नज़रंदाज़ न करे 
व कभी न  माफ़ करे 
छोड़ कर निजी लड़ाई
देश हित मे काम करे 
ताकि फिर से 
काले पड़ चुके मन आकाश पर 
लाल,पीले हरे ,गुलाबी 
सारे के सारे रंग भर सके .