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khud ko khojne ka safar

Monday, November 29, 2010

मेरे हिस्से का सूरज ..



तुमसे मिलना ,
एक अजीब इतफाक था
अँधेरे मे गूम होते
मेरे अस्तित्व
को एक सूरज तुमने दिया था
जिसकी रौशनी मे
मैंने खुद को जाना
जीवन ख़तम नहीं हुआ
इस बात को भी पहचाना
अजीब मंज़र था वो भी
अपना हाल
किसी को भी न सुनाने वाली लड़की
एक अजनबी के सामने
तार तार होके बिखर गयी थी
तुमने बहुत ख़ामोशी
से सबकुछ सुना था
तुम्हरी मदद से
मैंने वापस जिंदगी का
ताना बाना बुना था
तुम्हारा  संतावना देता स्पर्श
आज भी महसूस करती हूँ
आज भी जब भी अँधेरा होता है
वो सूरज रोशन करता है जीवन
जो तुमने मुझे दिया था
तब मैंने जाना था
एक पुरुष और स्त्री
का सम्बन्ध
ऐसा  भी हो सकता है
अगर इसे नाम देना
जरुरी हो तो
कह सकती हूँ
तुम हो
मेरे हिस्से का सूरज .

Tuesday, November 23, 2010

तेरे साथ का वादा












तुम बिन जीवन मे
 एक अजीब सी कमी है .
जैसे खुशबू ही न हो जीवन मे  ,
भले ही वो फूल सी खिली है .
तुम जो साथ होते हो ,
अजब चमत्कार होता है .
मंजिल तक जाकर लगता है ऐसा,
जैसे मै नहीं मंजिल मेरे पास तक चली है .
रास्ता पता है तो भी क्या ,
तुम साथ आओगे  इसलिए रुकी हूँ  .
तुम साथ होकर भी साथ हो या न हो ?
बस ये प्रश्न पर मै उम्र भर ढगी हूँ .
उगते हुए सूरज का नर्म उजाला ,
आकर्षित करता है तो क्या .
सिर्फ तेरे साथ का वादा हो तो ,
मै अंधेरो मै ही भली हूँ.