कब तक खुद को खुद से अनजाना सा रखे
झूट मुट खुश रहने का क्यों भरम सा रखे
मन के भीटर सबकुछ बिखरा बिखरा है ,
ऊपर से कब तक खुद को सहज सुलझा रखे.
जीवन के उल्घे धागों को सुलझा ही लेगे कभी ,
कब तक इस भरम को खुद मे जिन्दा रखे .
हर तरफ राह मे पत्थर और कांटे है ,
पल पल घायल होते तन मन को कैसे महफूज़ रखे
हजरों लोगो से रोज़ मिलना जिंदगी का हिस्सा है कभी तन्हाई मे खुद से भी मिलना अच्छा लगता है .
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khud ko khojne ka safar
Thursday, July 15, 2010
Tuesday, July 13, 2010
मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देते ,
नाम का बचा है जो रिश्ता उसे भी तोड़ क्यों नहीं देते ,
जब भी मिलते हो हम बहुत ख़ास है ये ही बताते हो ,
कब तक पहनोगे ये नकाब ?इसे उतार क्यों नहीं देते ,
बहुत अजीब रूहानी सा एक रिश्ता जोड़ा था तुमसे ,
वो मेरा पागलपण था ये एक बार मुझे कह क्यों नहीं देते ,
न चाहते हुए भी बहुत इंतज़ार होता है तुम्हारा,
अब कभी लौट के न आओगे ये एक बार कह क्यों नहीं देते .
नाम का बचा है जो रिश्ता उसे भी तोड़ क्यों नहीं देते ,
जब भी मिलते हो हम बहुत ख़ास है ये ही बताते हो ,
कब तक पहनोगे ये नकाब ?इसे उतार क्यों नहीं देते ,
बहुत अजीब रूहानी सा एक रिश्ता जोड़ा था तुमसे ,
वो मेरा पागलपण था ये एक बार मुझे कह क्यों नहीं देते ,
न चाहते हुए भी बहुत इंतज़ार होता है तुम्हारा,
अब कभी लौट के न आओगे ये एक बार कह क्यों नहीं देते .
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